Posted by: A | अगस्त 17, 2011

दीए और तूफ़ान की जंग

एक दिन पूर्व अन्ना हजारे एक टिमटिमाता कमज़ोर दिया था और कांगेस शासित सरकार सशक्त आँधी | साँझ होते होते, सरकारी आँधी ने उस चिंगारी को और फैला दिया, और एक दिए की चिंगारी पूरे देश में फ़ैल गयी |

वो जो ताकात का नाज़ करते थे, जो संविधान के ढाल के पीछे खडे हो सीना ठोकते थे, वे अब मूँह छुपा रहे हैं | जिनको हाथ में चारित्रिक हनन का कीचड उछालने की हथियार था, वे आज अपना दामन से दाग छुटाने की कोशिश कर रहे हैं| जो सरकारी बंदोबस्त को लामबंद कर हुंकार भरते थे, वे आज घिघियाते सुनायी पड़ते हैं | ना युवराज अछूते रहे न पूर्व के राजा, सभी हैरान और मुसीबत में हैं| राजनैतिक रूप से ये सभी रंक हो चुके हैं , क्या हुया, कैसे हुया ?

यह समय आत्म मंथन का हैं, एक छोटा सा सूत्र ना समझने का कर्मफल हैं, जनतंत्र में जनता सर्वोपरि होती हैं, न की नौकरशाह और नेता | संविधान का हवाला दे कर पिछले कई दशकों से किसी भी मुद्दे को ठन्डे बस्ते में डालने का तरकीब कांग्रेसी नेता खूब ही जानते हैं| किन्तु इस बार होम करते हाथ जला | चुनाव में तो अभी दो वर्ष है, बस एक यही आशा है, लेकिन क्या भारतीय जनता अपनी गलती फिर दोहरायगी? तब जो होगा वो तो भविष् के गर्भ में हैं, आज सरकार जनता के सामने घुटने टेकती नजर आती हैं
आभार – विश्वपत्रिका – vpatrika.com


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